बिकाऊ मीडिया। आजकल यह जुमला हर सोशल साइटों पर देखने व पढ़ने को मिल जा रहा है। एक पत्रकार होने के नाते यह जुमला मुझे बहुत चुभता है। मीडिया को बिकाऊ कहने वाले दो तरह के लोग हैं। एक भक्तासुर स्वयं भू देशभक्त तो दूसरे केजरी वायरस से पीढि़त क्रांतिकारी। एक की अच्छी खबर छपती है तो दूसरा मीडिया पर उंगली उठाने लगता है। इनमें ऐसे लोग भी हैं जो सार्वजनिक शौचालय का भी इस्तेमाल करते हैं तो उसका बिल कंपनी को देते हैं। मीडिया को बिकाऊ वो भी कह रहे हैं जो तीन रुपये का अखबार भी नहीं खरीदते और न्यूज देखने के लिए पड़ोसी के घर जाते हैं। अन्ना आंदोलन से पैदा हुए केजरिवाल ने उस दौरान कभी मीडिया को बिकाऊ नहीं कहा जब बिना ब्रेक की खबरें सभी चैनलों ने दिखाया। हां इस दौरान मीडिया को कांग्रेसी बिकाऊ बता रहे थे। यही हाल लोक सभा चुनावों के दौरान भी रहा जब मोदी को सबसे ज्यादा कवरेज मिल रही थी। अपनी पसंद की पार्टी या समुदाय के एंटी खबर चली नहीं कि हो गई मीडिया बिकाऊ। फेसबुक पर मेरे कई मित्र हैं। कुछ को मैं वर्षों से जानता हूं तो कुछ से कभी मिला नहीं। इन्हीं में से एक हैं डाक्टर साहब। मोदी मेनिया ने उ