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Showing posts from 2017

बैंक वाले डाल रहे डाका

बैंकों में रखी आपकी गाढ़ी कमाई को दीमक कैसे चाट रहा है ये बता रहे हैं आज तक के इग्ज़ेक्युटिव प्रोड्यूसर विकास मिश्र जी । इन्होंने अपनी आपबीती अपने फ़ेसबुक वॉल पर पोस्ट की है। सचमुच आप हैरान रह जाएँगे ये पढ़कर  मेरी पत्नी का सेविंग अकाउंट था इंडियन ओवरसीज बैंक में। गुप्त खाता। जिसमें जमा रकम का मुझे घर में लिखित कानून के मुताबिक पता नहीं होना था, लेकिन श्रीमतीजी के मोबाइल में बैंक से अक्सर खातों से कुछ रुपये निकलने के मैसेज आने लगे। कभी एसएमएस चार्ज के नाम पर, कभी एटीएम चार्ज के नाम पर। बीवी आगबबूला। मैं बैंक पहुंचा तो पता चला कि सेविंग अकाउंट में ब्याज घटकर 3 फीसदी हो गया है। एसएमएस चार्ज हर महीने देना है, हर छह महीने में एटीएम चार्ज देना है। दूसरे बैंक के एटीएम से पैसे निकाले तो उसका चार्ज। चाहे एटीएम का इस्तेमाल हो या न हो उसका भी चार्ज। खैर, मैंने पत्नी का वो अकाउंट बंद करवा दिया। खाता तो बंद हुआ, नए खाते के लिए बैंक की तलाश हुई। मैंने कहा पोस्ट ऑफिस में खुलवा लो। पोस्ट ऑफिस गए, वहां एक तो ब्याज 6 फीसदी से घटकर 4 फीसदी हो गया था। सर्वर ऊपर से डाउन। वहीं के एक कर्मचारी ने धीरे स

घंटा बदला है

"घंटा बदला है । अरे चैनल के अंदर मर्दों की मानसिकता नहीं बदली तो बाहर क्या घंटा बदलेगी ?" एंकर को घर छोड़ने जा रही दफ्तर की गाड़ी में बैठा गॉर्ड ड्राइवर से कहता है कि,' राँडें (एंकर) चेहरा पोतपात कर रखती हैं और कहीं भी टाँगें चौड़ी करने को तैयार हो जाती हैं. उपन्यास 'करेला इश्क का ' का यह अंश अपने आप में बहुत कुछ बयां करता है। दिल्ली में 'निर्भया कांड ' और इस केस के ट्रायल तक देश के मिजाज़ को भांपने और उसको टीवी पर दिखाने के दौरान मीडियाकर्मियों के भीतर भी एक द्वंद्व चल रहा था। इस द्वंद्व को बखूबी उभारा है विजय विद्रोही ने. एबीपी न्यूज़ के कार्यकारी संपादक विजय विद्रोही ने अपने इस उपन्यास का कथानक मीडियाकर्मियों की ज़िन्दगी पर केंद्रित की है। उपन्यास वैशाली, पलक, आदित्य और सर जी के जरिये चैनल में काम करने वाले लोगों की मानवीय भावनाओं को उकेरता है। एक स्ट्रगल कर रही महिला रिपोर्टर निर्भया कांड में अपने कैरियर की संभावनाएं तलाश रही है. उसकी इस सोच पर सर जी हैरान हैं. एक स्टार रिपोर्टर को खाप का खौफ,  ,एंकर से लव जिहाद, कैमरामैन का प्यार और सर जी की प

बाबाओं के देश में

आसाराम बापू, रामपाल, चंद्रा स्वामी, बाल ब्रह्मचारी जैसे लोगों के इस देश में बाबा राम रहीम को भी आख़िरकर सज़ा मिल ही गई। अब बीस साल तक बाबा जेल में ही रहेंगे। जुर्म भी शर्मनाक। अपने पद और प्रतिष्ठा की आड़ में ये बाबा अपराधी बन गए। धन्य हो भारत की न्यायप्रणाली कि ख़ुद को भगवान बताने वाले इन लंठों को सलाखों के पीछे पहुँचाया । लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन बाबाओं के ग्लैमर से प्रभावित अनपढ़ ही नहीं सरकारें भी हैं । अब ज़रा अपने प्राचीन और मध्यकाल को याद कर लीजिए । बाबा तुलसीदास , बाबा कबीर , बाबा दादूदयाल बड़े संत थे जीवन भर कौडी कौडी को मुहताज रहे ।दादू को जयपुर राजघराना बहुत मानता था मगर उन्होंने राजपुत्रों और धन को  ठेंगें पर रखा। कुम्भनदास ने अकबर को ठेंगा दिखा दिया । तुलसी भीख माँग कर खा लेते थे । रविदास मोची का कामकर कमाते खाते रहे । संत वही है जो कामिनी को बेटी समझे वेश्या नहीं। कीर्ति से दूर रहे और कंचन को लात मार दी । जायसी तो शेरशाह सूरी को औकात बता दी थी । "मोहिं का हँससि की हँससि कोहरहि" । 1919 -20 के आसपास बाबा रामचंद्र  भी संत  थे किसानों को एकत्र किया और अं

मासूमों का हत्यारा कौन

गोरखपुर के बीआरडी पीजी मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन की सप्लाई रोक दिए जाने से 40 बच्चों की मौत हो गई। प्रशासन भले ही इसे लापरवाही बताये लेकिन, ये सीधे-सीधे हत्या का मामला बनता है। जहाँ तक मैं जानता हूँ , भारतीय दंड संहिता के मुताबिक़ अगर कोई व्यक्ति, यह जानते हुए कोई ऐसा कृत्य करता है कि उससे किसी की जान चली जाएगी, तो वह व्यक्ति हत्या का दोषी है। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में भी ऐसा ही हुआ। आइसीयू या एनआइसीयू में भर्ती किसी भी मरीज़ के लिए निर्बाध आक्सीजन की सप्लाई की व्यवस्था सुनिश्चित करना अस्पताल प्रसाशन की ज़िम्मेदारी है । एक साधारण इंसान भी यह जानता है कि एक मिनट के लिए आक्सीजन न मिलने से साँसों की डोर थम जाएगी। इसके बावजूद आक्सीजन की सप्लाई रोकी गई और मरीज़ों को मौत के मुँह से निकालने वाला मेडिकल कॉलेज क़त्लगाह बन गया। इस अपराध के लिये जो भी ज़िम्मेदार हैं उनपर हत्या और आपराधिक षड्यन्त्र का मुक़दमा चलना चाहिये। इंसेफ़ेलाइटिस को जड़ से ख़त्म करने की मुहिम छेड़ने वाले योगी जी सीएम बनने के बाद एक ऐसे काकस से घिर गए हैं जो उनकी साख पर बट्टा लगा रहा है। भाई प्रेम शंकर मिश्रा के फ़ेसबुक वॉल स

रक्षाबंधन और बेशर्मी की हाइट

आज रक्षाबंधन है।गाँव में सुबह सुबह ही कानों में राखी के गीतों की स्वर लहरियाँ पहुँचने लगतीं थीं। आज कहीं से भैया मेरे राखी के बंधन को ना भुलाना, मेरे भैया मेरे अनमोल रतन जैसे प्यार के ये बोल सुनाई नहीं दिए। बड़े उत्साह से टीवी ऑन किया। २४ घंटे मनोरंजन कराने का दावा करने वाले म्यूज़िक चैनलों पर ये चल रहा था .. ज़ूम: मैं बनी तेरी राधा  ज़िंग:मैं परेशां, परेशां  Zeeetc : सारी नाइट बेशर्मी की हाइट  Mtv: मेरे रस्के कमर  म्यूज़िक इंडिया : न मैं जीता न मर्दा रिमोट पर ऊँगली तेज़ी से चल रही थी और इसी के साथ ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था। डिश टीवी पर म्यूज़िक के कई चैनल पर किसी पर भी रक्षाबंधन का एक भी गीत नहीं। बहुत निराश हुआ मैं।अगर सबकुछ टीआरपी से ही तय होता है इन चैनल वालों को कौन समझाए की आज राखी के गीत ही सुने और गुनगुनाये जाएँगे। बाबा drigrajanand

ताकि बचल रहे चोटी

नज़र न केकरो लग जाई ... एगो नेबुआ दू चार गो मिरचा लटका ल चोटी में कहाँ बानी ये रवि किशन बाबा । कई साल पहले उदित नारायण आपके लिए ई गाना गाकर जता दिए थे कि सुंदर और लंबी चोटी वाली महिलायें बच कर रहें। वहीँ मनोज तिवारी बाबा ने जैसे ही गाना बजाना छोड़कर दिल्ली भाजपा की कमान संभाली पूरे देश में चोटी कटवों को छोड़ दिया। चोटी कटने या कटवाने के पीछे मुझे लगता है इ भोजपुरी के दोनों बाबाओं का हाथ है। अरे केजरी सर जी, बोलती बंद टॉनिक पीकर चुप हैं तो क्या हुआ, मैं तो बोलूँगा। आप लोग अपने पुराने गाने को हिट कराने के लिए मोदी जी के साथ मिलकर चोटी काटो गैंग उतार दिया है। अब देखिए न रामकलिया भौजी ब्यॉय कट बाल के सपना लिहले डोली से उतरल और अब जब घर में नतिन पतोहू आवे वाली बा त ओकर सपना पूरा हो गइल। लोग भले ही चोटी कटवा से डेरा ता लेकिन भौजी त मारे ख़ुशी के बुक्का फाड़ के रोवत बाटी।  https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=6066101628698298975#editor/target=post;postID=5514536374893470717;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=3;src=postname दरअसल रामकली की चोटी किसी ने सोते

मुँह नोचवा मिला नहीं चोटी कटवा पैदा हो गया

वही हुआ जिसका मुझे डर था। मेरे लिए भी एक चौंकाने वाली ख़बर थी। हरियाणा के फ़रीदाबाद और रेवाड़ी से ख़बर आइ थी कि कई महिलाओं की चोटी कट गई। कौन काट रहा है, क्यों काट रहा है? इसका जवाब न तो प्रशासन के पास था और न ही रिपोर्टर के पास। ख़बर सनसनीख़ेज़ थी अतः इसे पहले पन्ने पर स्थान देना पड़ा। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा कि पैनिक क्रीएट न हो। ख़बर डीप सिंगल लगाई। दो दिन बाद फिर दिल्ली से ऐसी ही घटना सामने आइ। अगले दिन अख़बारों के पहले पन्ने पर यह घटना टॉप बॉक्स लगी। और फिर वही हुआ जो मैं नहीं चाहता था । मीडिया अफ़वाह फैलाने वालों में शामिल हो गई। राजस्थान से निकला चोटी चोर हरियाणा , दिल्ली होते हुए पूरे उत्तर भारत में फैल गया। चोटी काटने वाली की शक में एक बुज़ुर्ग मारी गईं। U अब ज़रा पंद्रह साल पीछे चलिए। साल 2002-03 में कई राज्यों में ख़ौफ़ का पर्याय रहा मुँहनोचवा आज तक पकड़ा नहीं जा सका, अब चोटी कटवा पैदा हो गया। १५ साल पहले मुँह नोचवा का ख़ौफ़ इस तरह था कि गाँव में शाम ढलते ही लोग घरों में दुबक ( हालाँकि ये सब पत्रकारों की नज़र में था) जाते थे। लोग छतों पर सोना छोड़ दिए। लेकिन हम लोग

यहाँ भ्रष्टाचार ही ईमान

उन दिनों पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे ज्ञानी जैल सिंह। पार्टी इस बात से खफा थी कि पटियाला का एक अमीर समुदाय कांग्रेस को चंदा नहीं दे रहा था। ऊपर से प्रेशर पड़ा, ज्ञानी जैल सिंह ने पटियाला के डीएसपी को टाइट किया। डीएसपी कुछ दिन बाद ही मोटी रकम लेकर पहुंच गया। जैल सिंह ने पूछा-ये कमाल कैसे किया। डीएसपी बोला-उसने एक वैन मंडी में घुमाई, जिसमें परदे लगे थे। पीछे पुलिस की लाउडस्पीकर लगी गाड़ी थी जिसमें रजिस्टर और खाली थैले थे। लाउडस्पीकर से मुनादी हुई कि पुलिस ने छापा मारकर एक मैडम को पकड़ा है, जो पटियाला में सेक्स रैकेट चलाती हैं। अब वैन में बैठी वो मैडम उन सभी लालाओं को पहचानेंगी, जिनके पास वो लड़कियां सप्लाई करती थीं। जिस दुकान के सामने वैन जाती, उसका मालिक घबराकर पैसे देकर अपनी जान छुड़ाता। सभी शिनाख्त परेड से बचना चाहते थे। तो कुछ इस तरह से उस वक्त मोटी रकम वसूली गई। ये किस्सा खुद ज्ञानी जैल सिंह ही सुनाया करते थे, इसे वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने अपने फेसबुक पेज पर भी शेयर किया है।  19 मार्च 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में शपथ ले रहे थे। तब यूपी में भी बीजे

13 का पहाड़ा सुनाओ और बन जाओ शिक्षक

शिक्षामित्रों को गुमराह करने वाले उनके नेता हैं, पैसे खा खाकर गाड़ी बांगला खड़ी कर ली। प्रधानों से लेकर सरकार तक इसमें दोषी है। पहले ग्राम स्तर पर चयन में राजनीति, फिर चुनाव नज़दीक देखकर अखिलेश और मोदी का लालीपाप। भूल गए नियम क़ानून भी कोई चीज़ होती है। शिक्षक बनने के लिए बीएड, बीटीसी, टीईटी ज़रूरी है। 90 फ़ीसद शिक्षा मित्र अच्छी तरह जानते हैं कि वो अध्यापक पद के योग्य नहीं हैं। इसलिए tet को फ़ेस नहीं करना चाहते। भाइयों आप लोगों के साथ मेरी संवेदनाएँ हैं लेकिन इतना ज़रूर जानिए कि मिस्त्री चाहे कितना भी अनुभवी और योग्य क्यों न हो, बिना बीटेक या be किए उसे इंजीनियर नहीं कहा जा सकता।और शिक्षामित्र चाहते हैं कि सरकार उनसे 7 और 13 का पहाड़ा सुनकर सहायक अध्यापक की नौकरी दे दे ।