"घंटा बदला है । अरे चैनल के अंदर मर्दों की मानसिकता नहीं बदली तो बाहर क्या घंटा बदलेगी ?" एंकर को घर छोड़ने जा रही दफ्तर की गाड़ी में बैठा गॉर्ड ड्राइवर से कहता है कि,' राँडें (एंकर) चेहरा पोतपात कर रखती हैं और कहीं भी टाँगें चौड़ी करने को तैयार हो जाती हैं.
उपन्यास 'करेला इश्क का ' का यह अंश अपने आप में बहुत कुछ बयां करता है। दिल्ली में 'निर्भया कांड ' और इस केस के ट्रायल तक देश के मिजाज़ को भांपने और उसको टीवी पर दिखाने के दौरान मीडियाकर्मियों के भीतर भी एक द्वंद्व चल रहा था। इस द्वंद्व को बखूबी उभारा है विजय विद्रोही ने.
एबीपी न्यूज़ के कार्यकारी संपादक विजय विद्रोही ने अपने इस उपन्यास का कथानक मीडियाकर्मियों की ज़िन्दगी पर केंद्रित की है। उपन्यास वैशाली, पलक, आदित्य और सर जी के जरिये चैनल में काम करने वाले लोगों की मानवीय भावनाओं को उकेरता है। एक स्ट्रगल कर रही महिला रिपोर्टर निर्भया कांड में अपने कैरियर की संभावनाएं तलाश रही है. उसकी इस सोच पर सर जी हैरान हैं.
एक स्टार रिपोर्टर को खाप का खौफ, ,एंकर से लव जिहाद, कैमरामैन का प्यार और सर जी की पटरी से उतरी दाम्पत्य की गाड़ी। ये चार कहानियां एक साथ चलती हैं और जब एक जगह ये मिलतीं हैं तो वह उपन्यास का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है. अगर आप मीडिया से नहीं जुड़े हैं तो इस उपन्यास को जरूर पढ़ें और अगर आप मीडियाकर्मी हैं तो आपको इसे पढ़ना और जरूरी है.
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