उन दिनों पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे ज्ञानी जैल सिंह। पार्टी इस बात से खफा थी कि पटियाला का एक अमीर समुदाय कांग्रेस को चंदा नहीं दे रहा था। ऊपर से प्रेशर पड़ा, ज्ञानी जैल सिंह ने पटियाला के डीएसपी को टाइट किया। डीएसपी कुछ दिन बाद ही मोटी रकम लेकर पहुंच गया। जैल सिंह ने पूछा-ये कमाल कैसे किया। डीएसपी बोला-उसने एक वैन मंडी में घुमाई, जिसमें परदे लगे थे। पीछे पुलिस की लाउडस्पीकर लगी गाड़ी थी जिसमें रजिस्टर और खाली थैले थे। लाउडस्पीकर से मुनादी हुई कि पुलिस ने छापा मारकर एक मैडम को पकड़ा है, जो पटियाला में सेक्स रैकेट चलाती हैं। अब वैन में बैठी वो मैडम उन सभी लालाओं को पहचानेंगी, जिनके पास वो लड़कियां सप्लाई करती थीं। जिस दुकान के सामने वैन जाती, उसका मालिक घबराकर पैसे देकर अपनी जान छुड़ाता। सभी शिनाख्त परेड से बचना चाहते थे। तो कुछ इस तरह से उस वक्त मोटी रकम वसूली गई। ये किस्सा खुद ज्ञानी जैल सिंह ही सुनाया करते थे, इसे वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने अपने फेसबुक पेज पर भी शेयर किया है।
19 मार्च 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में शपथ ले रहे थे। तब यूपी में भी बीजेपी की सरकार थी। शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने यूपी के एक मंत्री भी पहुंचे थे, जिनके पास कमाऊ महकमा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने विभाग के सबसे बड़े अफसर से उन्होंने कहा कि उन्हें रात तक 10 लाख रुपये पहुंचाए जाएं। अफसर रीढ़ वाले थे, बोले-कुछ तो ख्याल कीजिए, आज कितना बड़ा दिन है, अटल जी शपथ ले रहे हैं, वे ईमानदारी की मिसाल माने जाते हैं, कम से कम आज के दिन तो ऐसा मत कहिए। मंत्री जी मानने को तैयार नहीं थे। अफसर को ट्रांसफर की धमकी दे डाली, जलील किया। बड़े अफसर ने बाकी अफसरों को बात बताई। सबकी यही राय थी कि मंत्री जी को नाराज करना ठीक नहीं है, अफसरों ने चंदा करके 5 लाख रुपये का इंतजाम किया, मंत्री जी को अर्पित किया। मंत्री जी, थोड़े कुपित हुए, लेकिन मान गए। ये वाकया मुझे उसी विभाग के एक अफसर ने सुनाया था।
इस बार यूपी में विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आए तो करीब-करीब तय हो चुका था कि मनोज सिन्हा मुख्यमंत्री बनेंगे। मेरे एक करीबी हैं, जिनसे मनोज सिन्हा की बहुत निकटता है। एक आईएएस ने उनके चरण पकड़ लिए। बोले-भाई साहब कुछ भी करो, बढ़िया पोस्टिंग करवाओ। शिकायत का मौका नहीं दूंगा। जो कहो, वो करूंगा। एक तो वो अफसर भ्रष्ट थे, भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात भी थे। दूसरे मेरे वो करीबी इन सब बातों से कोसों दूर थे, बेजा सिफारिश उनके स्वभाव में नहीं है । मनोज सिन्हा से उनका रिश्ता बरसों पुराना था और निजी भी। अब वो अफसर रोज फोन खड़काने लगा। इसी बीच योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए। योगी आदित्यनाथ की ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता। इस मामले में उन पर उंगली भी नहीं उठाई जा सकती, लेकिन सिस्टम का खेल देखिए। वो भ्रष्ट आईएएस एक प्रमुख जिले का जिलाधिकारी है। नाम नहीं बताऊंगा, अंदाजा लगाने के लिए आप आजाद हैं।
लगे हाथ एक किस्सा और। मेरठ में एक डीएम आए। नीली शर्ट और लाल पैंट में भी कई बार दिखे। एक रोज उन्होंने मेरठ के एक मालदार आदमी को बुलवा लिया। बंद कमरे में पूछा-मुझे पता नहीं है कि मेरा क्या हिस्सा होता है, लेकिन 10 लाख रुपये आप भिजवाइए। ऊपर भेजना है, वहां से आदेश आया है। उस वक्त प्रदेश में बीएसपी की सरकार थी। मालदार आदमी वहां से चला गया। कुछ ही देर बाद एक कद्दावर केंद्रीय मंत्री के यहां से डीएम साहब को फोन आया, खूब डांट पड़ी, डीएम साहब कांपने लगे, माफी मांगने लगे। हां, केंद्र में तब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी।
कल भ्रष्टाचार को लेकर मैंने एक पोस्ट लिखी थी, जिस पर ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आईं। तमाम लोगों ने इशारा किया कि सब कुछ गड़बड़ नहीं है। मैं भी मानता हूं और जानता हूं कि बेईमानी के कीचड़ के बीच ईमानदारी भी सीना ताने खड़ी है। राजनीति में भी तमाम ऐसे लोग रहे हैं, जिनके दामन पर कभी एक छींटा तक नहीं पड़ा। ऐसे तमाम अफसर हैं और हुए हैं, जिनके ईमान को कोई डिगा नहीं सका।
अफसर उतने बेईमान नहीं, जितना ये सिस्टम बेईमानी का आदी हो चुका है। ईमानदार अफसरों की अमूमन अच्छी और जिम्मेदारी वाली जगह पोस्टिंग नहीं होती। योगीराज से पहले सुलखान सिंह का नाम कौन जानता था। योगी ने उन्हें प्रदेश का डीजीपी बनाया। तब लोगों ने उनकी ईमानदारी के किस्से सुने। दरअसल सरकार की आम तौर पर ईमानदार अफसरों से ज्यादा पटती नहीं, लेकिन जो अफसर इस सिस्टम को जानते हैं, उन्हें किसी भी सरकार से फर्क नहीं पड़ता। सरकार कोई भी हो, वे मलाई काटते हैं। सख्त सरकार हो तो रेट बढ़ भी जाते हैं। हर सरकार ईमानदारी की बात करती है, दीन-दुखियों की सेवा की बात करती है, जिम्मा अफसरों पर डालती है, लेकिन सिस्टम ऐसा है कि दीन दुखियों से लेकर ऊपर तक पूरी चेन से उगाही चलती है, ऊपर तक पहुंचती है। राजीव गांधी ने कबूल किया था कि केंद्र से चले एक रुपये में से सिर्फ 15 पैसा ही जनता के कामों तक पहुंचता है। मैं निराश नहीं हूं, मुझे उम्मीद है कि एक रोज पूरा का पूरा रुपया जनता के कामों तक पहुंचेगा। आप भी नाउम्मीद मत होइए, क्योंकि अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, रोशनी की एक किरण भी उसे चीर सकती है।
Vikas Mishra भैया के वॉल से सिस्टम के भ्रष्टाचार की दूसरी किश्त
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