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बाबाओं के देश में



आसाराम बापू, रामपाल, चंद्रा स्वामी, बाल ब्रह्मचारी जैसे लोगों के इस देश में बाबा राम रहीम को भी आख़िरकर सज़ा मिल ही गई। अब बीस साल तक बाबा जेल में ही रहेंगे। जुर्म भी शर्मनाक। अपने पद और प्रतिष्ठा की आड़ में ये बाबा अपराधी बन गए। धन्य हो भारत की न्यायप्रणाली कि ख़ुद को भगवान बताने वाले इन लंठों को सलाखों के पीछे पहुँचाया । लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन बाबाओं के ग्लैमर से प्रभावित अनपढ़ ही नहीं सरकारें भी हैं ।

अब ज़रा अपने प्राचीन और मध्यकाल को याद कर लीजिए । बाबा तुलसीदास , बाबा कबीर , बाबा दादूदयाल बड़े संत थे जीवन भर कौडी कौडी को मुहताज रहे ।दादू को जयपुर राजघराना बहुत मानता था मगर उन्होंने राजपुत्रों और धन को  ठेंगें पर रखा। कुम्भनदास ने अकबर को ठेंगा दिखा दिया । तुलसी भीख माँग कर खा लेते थे । रविदास मोची का कामकर कमाते खाते रहे । संत वही है जो कामिनी को बेटी समझे वेश्या नहीं। कीर्ति से दूर रहे और कंचन को लात मार दी । जायसी तो शेरशाह सूरी को औकात बता दी थी । "मोहिं का हँससि की हँससि कोहरहि" । 1919 -20 के आसपास बाबा रामचंद्र  भी संत  थे किसानों को एकत्र किया और अंग्रेज़ों की सत्ता की चूले हिला दी थी । गाँधी भी सन्त थे । हमारे यहाँ सन्तों की लम्बी परम्परा है ऐसे सन्त आज भी हैं लेकिन दुख यह है कि आवारा पूँजी  , और भूमंडलीकृत लम्पटीकृत लोकतन्त्र द्वारा गढे गये ढोंगी धन्धेबाजों की चमक दमक के आगे उन्हे कोई जानता नही है । वो खुद को जनाना भी नही चाहते हैं ।ई बाबा हैं ,?  लव यू लव यू गाना गाते हैं , क्रीम तेल और चडढी बनियान बेंचते है, बलात्कार करते हैं , चुनाव लडते हैं , अभिनेत्रियों के साथ डांस करते हैं , टीवी चैनल चलाते हैं , दंगा करते हैं ।
भगवान शिव का मानवीयकरण करने वाले आमीश कहते हैं कि जब अच्छाई अपना वक़्त पूरा कर लेती है तो बुराई में बदलने लगती है। 

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